Share
नम्रता आनंद: प्राथमिक शिक्षा में प्रेरणा का स्रोत
Sep 12, 2025
एक अच्छा समाज तभी बनता है, जब शिक्षा की नींव मजबूत होती है, और यह नींव रखने का कार्य प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक करते हैं। वे बच्चों के पहले गुरु होते हैं, जो उन्हें न केवल किताबों की दुनिया से परिचित कराते हैं, बल्कि जीवन की बुनियादी समझ भी देते हैं।
गोरखपुर जिले के जूडियान प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत नम्रता आनंद पिछले दस वर्षों से शिक्षा के क्षेत्र में सक्रिय हैं और पिछले चार वर्षों से इसी विद्यालय से जुड़ी हुई हैं।
“बचपन से ही मेरा सपना था कि मैं बच्चों को पढ़ाऊं। जब विद्यालय से जुड़ी, तो महसूस हुआ कि यह काम सिर्फ नौकरी नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है देश के भविष्य को आकार देने की,” नम्रता बताती हैं।

वे कहती हैं कि, विद्यालय का वातावरण सहयोगपूर्ण और प्रेरक है। निपुण भारत अभियान की शुरुआत के बाद स्कूल में कई सकारात्मक बदलाव हुए हैं। अब स्मार्ट प्रोजेक्टर जैसे तकनीकी उपकरण बच्चों के लिए पढ़ाई को रोचक और आकर्षक बना रहे हैं। साथ ही, प्रिंट और डिजिटल मीडिया, जैसे रंग-बिरंगी कहानियाँ, चित्र-पहेलियाँ और दृश्य सामग्री, बच्चों को एकाग्र होकर सीखने के लिए प्रेरित करती हैं।
“शिक्षण सामग्री (Teaching Learning Material) ने पढ़ाई की शैली ही बदल दी है। अब बच्चे किताबों के शब्दों को केवल रटते नहीं, बल्कि उन्हें महसूस कर पाते हैं,” नम्रता कहती हैं।
वह मानती हैं कि चार्ट, फ्लैश कार्ड और खेलों के माध्यम से पाठ को समझना और भी मजेदार हो गया है। इस प्रक्रिया से बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ता है और वे सीखने के प्रति और अधिक उत्साहित होते हैं। शुरुआत में कुछ बच्चे केवल खेलने या घूमने के लिए विद्यालय आते थे और पढ़ाई में रुचि नहीं दिखाते थे। लेकिन अब बच्चे अपने दोस्तों से जुड़ते हैं और विद्यालय को खुशी-खुशी अपनाते हैं। खुशहाल और प्रेरक माहौल और शिक्षक का व्यवहार उन्हें धीरे-धीरे पढ़ाई से जोड़ने में सफल हो रहा है। बच्चों और शिक्षकों के बीच रिश्ते पहले से कहीं ज्यादा मजबूत हो रहे हैं। यह अभियान बच्चों को केवल पढ़ाई में ही नहीं, बल्कि जीवन के अन्य पहलुओं में भी सक्षम बनाता है।

नम्रता के विद्यालय में अधिकांश बच्चे वंचित और पिछड़े वर्ग से आते हैं। उनके माता-पिता या तो पढ़े-लिखे नहीं हैं, या उन्हें पढ़ाई के महत्व का एहसास नहीं है। ऐसे में, नम्रता की भूमिका केवल पाठ पढ़ाने तक सीमित नहीं रही—उन्होंने बच्चों के साथ व्यक्तिगत जुड़ाव बनाया, उन्हें धीरे-धीरे पढ़ाई में रुचि दिलाई और उनके आत्मविश्वास को बढ़ाया। वे बच्चों के भावनात्मक और सामाजिक विकास पर ध्यान देती हैं, ताकि हर बच्चा अपने तरीके से सीख सके और कक्षा में सक्रिय रूप से भाग ले सके।
नम्रता का मानना है कि निपुण भारत अभियान केवल पहली से तीसरी कक्षा तक सीमित नहीं रहना चाहिए। उनका सुझाव है कि इसे कम से कम पाँचवीं कक्षा तक जारी रखा जाना चाहिए, क्योंकि यही वह समय है जब बच्चों की भविष्य की नींव तय होती है, और नींव मजबूत हो तभी ऊँची इमारत खड़ी की जा सकती है।
Share this on