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शिक्षा से पहचान, पहचान से परिवर्तन: राधा अग्रवाल की प्रेरक कहानी
Aug 28, 2025
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के एक प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत सहायक अध्यापिका राधा अग्रवाल इस बात की मिसाल हैं कि शिक्षा के माध्यम से इंसान अपनी अलग पहचान बना सकता है और समाज में सकारात्मक बदलाव की राह भी दिखा सकता है। अपने समर्पण और मेहनत से उन्होंने साबित किया है कि एक शिक्षक केवल बच्चों के जीवन को ही नहीं, बल्कि पूरे समुदाय के भविष्य को आकार देने में अहम भूमिका निभाता है।

राधा बचपन से ही शिक्षिका बनने का सपना देखती थीं। जब वे अपने स्कूल में शिक्षकों को गरिमा के साथ पढ़ाते हुए देखतीं, तो उनके मन में भी यही आकांक्षा जन्म लेती, कि एक दिन वे भी ऐसी कुर्सी पर बैठेंगी और बच्चों को पढ़ाएँगी। विद्यालय की गतिविधियों में शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी ने उन्हें यह एहसास दिलाया कि शिक्षा केवल ज्ञान का माध्यम नहीं, बल्कि समाज को नया आकार देने का एक सशक्त जरिया है।
उनकी शिक्षा की शुरुआत देवरिया जिले के चंद्रशेखर आज़ाद इंटर कॉलेज से हुई और फिर राजकीय महाविद्यालय से उन्होंने स्नातक की डिग्री प्रथम श्रेणी में प्राप्त की। वे अपने कॉलेज की पहली छात्रा थीं, जिन्होंने यह उपलब्धि हासिल की। राधा गर्व से कहती हैं,
“मैं अपने परिवार और पीढ़ी की पहली लड़की हूं, जो सरकारी सेवा में है।” उनके इस सफर ने गाँव की अनेक लड़कियों को आगे पढ़ने और अपने सपनों को साकार करने की प्रेरणा दी।
अपने विद्यालय में राधा ने निपुण भारत मिशन के अंतर्गत कई नवाचारी शिक्षण पद्धतियाँ अपनाईं। वे मानती हैं कि पहले की शिक्षा प्रणाली में केवल रटने पर ज़ोर था, जिससे बच्चों की रुचि धीरे-धीरे कम हो जाती थी। लेकिन अब शिक्षा में गतिविधि-आधारित विधियाँ जैसे गीत, चित्र, खेल, कहानियाँ और संवाद को अपनाया गया है, जिससे बच्चों की भागीदारी बढ़ी है और वे पढ़ाई को एक आनंददायक अनुभव मानने लगे हैं।

उन्होंने आशु, ऋषिका और प्रभु जैसे छात्रों के उदाहरण दिए, जिनमें शिक्षा के प्रति नया उत्साह देखने को मिला। प्रभु, जो पहले कुछ भी नहीं समझ पाता था, अब संख्याएँ पहचानता है और गिनती भी करता है। ऋषिका और आशु, जो पहले गणित और भाषा से डरते थे, अब आत्मविश्वास से सीखने लगे हैं। राधा जी कहती हैं, “इन बच्चों की आँखों में चमक देखना मेरे लिए सबसे बड़ी खुशी है।”
राधा जी का सपना है कि उनके विद्यालय से निकले छात्र जब आगे किसी अन्य विद्यालय में जाएँ, तो वहाँ के शिक्षक यह पूछें कि वे कहाँ से पढ़े हैं। वे कहती हैं, “पढ़ाना ही मेरी पहचान है। मैं चाहती हूं कि मेरे छात्र भी आगे चलकर अपनी अलग पहचान बनाएं।”
उनकी यह यात्रा सिर्फ एक शिक्षिका की नहीं है, बल्कि उन तमाम लड़कियों की भी है जो छोटे कस्बों से निकलकर अपने सपनों को पंख देना चाहती हैं। उनके लिए शिक्षा केवल नौकरी का साधन नहीं, बल्कि समाज को संवारने का एक मिशन है। राधा अंत में कहती हैं, “शिक्षक से बढ़कर कोई पद नहीं, क्योंकि वही वह कड़ी है, जो बाकी सभी पदों का सृजन करता है।”
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