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उषा सोलंकी: वो शिक्षिका जो घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल लेकर आती हैं

Sep 12, 2023

शिक्षा के प्रति अपनी प्रतिबद्धता और समर्पण के ज़रिये मध्यप्रदेश के शाजापुर ज़िले के किलोदा गाँव की उषा सोलंकी ने प्रेरणा से भरी कहानी रची है, जिसमें मेहनत और संघर्ष की प्रेरणादायक उपलब्धि है। वो ना केवल एक बेहतरीन शिक्षिका हैं, बल्कि उन्होंने एक पूरे समुदाय को शिक्षा की रौशनी से परिपूर्ण किया है।

यह सब कुछ उषा के लिए इतना आसान नहीं था। बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के जज़्बे के साथ उन्होंने किलोदा गाँव के प्राथमिक विद्यालय में जॉइन तो कर लिया था मगर चुनौती यह थी कि 2-3 बच्चे ही विद्यालय आते थे। अब पढ़ाएं तो किसको पढ़ाएं? लेकिन उषा के हौसले इतने मज़बूत थे कि वो कहां इन हालातों के आगे झुकने वाली थीं!

उन्होंने बच्चों के माता-पिता के साथ एक मज़बूत संवाद स्थापित किया, जिससे उन्होंने बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाया और उन्हें पढ़ाई के प्रति उत्साहित किया। उनकी मेहनत, लगन और संघर्ष ने बच्चों को स्कूल आने के लिए प्रेरित करना शुरू किया।

“शुरुआत में स्कूल में बच्चे नहीं आते थे। मैंने घर-घर जाकर बच्चों के पेरेन्ट्स से बात की और फिर बच्चों ने आना शुरू किया। अब प्राइवेट स्कूलों से भी बच्चे हमारे स्कूल में आ रहे हैं, जिससे हमारा एंरॉलमेंट भी बढ़ा है।”

उषा सोलंकी

उषा कहती हैं, “बच्चे स्कूल तो आने लगे मगर उन्हें आदत थी नहीं लगातर बैठने की। ऐसे में उनके लिए मैं खुद के पैसों से फल और बिस्किट लाती थी। आज भी अक्सर बच्चों के लिए मैं चॉकलेट लाती हूं।”

मिशन अंकुर के तहत कराई जाने वाली गतिविधियां और उषा की कोशिशों का नतीजा है कि अब बच्चे स्वयं विद्यालय आते हैं। अब बच्चों की गणित की कमज़ोरी भी दूर हो रही है, क्योंकि अब कक्षा में मोहब्त ने डांट-फटकार की जगह ले ली है।

ऐसा करने से उषा का संबंध बच्चों के साथ और भी गहरा हो गया। उन्होंने बच्चों को खेल-खिलौनों के माध्यम से भी पढ़ाया। उषा ने खुद के पैसों से एक और शिक्षिका को नियुक्त किया, ताकि बच्चों को संभाला जा सके।

मिशन के तहत कराई जाने वाली गतिविधियों और उषा के प्रयासों के कारण अब बच्चे स्वयं स्कूल आते हैं

कक्षा 2 की छात्रा पायल कहती हैं कि हमें पढ़कर कुछ बनना है, इसलिए हम स्कूल आते हैं। पायल को पुलिस बनना है और उन्हें लगता है कि यदि वो रोज़ स्कूल आएंगी तो एक दिन जरूर पुलिस बनेंगी। आरुषी कक्षा पहली की छात्रा हैं और वो बताती हैं स्कूल में हमें खेल-खेल के माध्यम से पढ़ाया जाता है, इसलिए लगता ही नहीं है कि हम स्कूल में है, ऐसा लगता है कि हम घर पर हैं।

उषा के लिए मिशन अंकुर के तहत नई शैली की शिक्षा को अपनाकर बच्चों को पढ़ाना आसान नहीं था। 20 वर्षों से वो जिस शिक्षण पद्धति के ज़रिये पढ़ा रही थीं उसमें ना तो शिक्षक संदर्शिका था और ना ही गतिविधि आधारित शिक्षा। धीरे-धीरे शिक्षक संदर्शिका की मदद से उषा नई शैली की शिक्षा को अपनाने लगीं।

ये पूछे जाने पर कि मिशन अंकुर की वो कौन सी विशेषताएं हैं जिनके ज़रिये कक्षा में पढ़ाने में मदद मिलती है, वो बताती हैं, “गतिविधि आधारित शिक्षा का बच्चों को काफी फायदा मिल रहा है। अभी हम कुछ भी पढ़ाते हैं तो उसमें गतिविधि होती है। ‘आई डू’, ‘वी डू’ और ‘यू डू’ के तहत कोई भी गतिविधि पहले मैं करती हूं फिर हम सब और फिर बच्चे स्वयं करते हैं। इसका काफी फायदा मिला है। अब हम वर्ण भी एक दिन में 1-2 ही बताते हैं और पहले सभी वर्णों एक बार में बताया जाता था।”

उषा की महत्वपूर्ण योगदान की वजह से उनके विद्यालय में प्राइवेट स्कूलों के छात्र भी आने लगे हैं। दूर-दूर तक पेरेन्ट्स उनकी शिक्षा की गुणवत्ता को मानते हैं।

इन बदलावों से मिशन अंकुर का 2027 तक शाशकीय विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण मूलभूत साक्षरता और संख्या ज्ञान में बच्चों को दक्ष बनाने का सपना साकार होता दिखाई पड़ रहा है।

उषा की कहानी से हमें यह सीख मिलती है कि संघर्ष, मेहनत और समर्पण से कोई भी असंभव लगने वाली स्थिति को पलट सकता है। उनकी प्रेरणा और समुदाय के साथ मिलकर किए गए काम से यह साबित होता कि शिक्षक किसी भी समुदाय के सदस्यों के जीवन को सुधार सकते हैं और उन्हें उनके लक्ष्यों की ओर अग्रसर कर सकते हैं।

उषा सोलंकी की कहानी ने हमें यह दिखाया है कि शिक्षा ही समाज की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता होती है। उषा जैसी शिक्षिका हमारे समाज की उन हस्तियों में से हैं, जो ना केवल शिक्षा को सुधारती हैं, बल्कि हमारे भविष्य को भी रौशनी से भर देती हैं।

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